परोपकारी' पत्रिका महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा का मुखपत्र है। यह पत्र माह में दो बार अर्थात पाक्षिक रूप से (एक वर्ष में २४ पत्रिकाएं) प्रकाशित होता है। इस पत्र में समाज की सामयिक घटनाओं पर आर्यसमाज का दृष्टिकोण संपादकीय द्वारा रखा जाता है। प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु का स्तम्भ लेख 'तड़प-झड़प' इतिहास के तथ्यों से परिचय कराने के साथ-साथ वेद विरोधियों की आपत्तियों का सटीक उत्तर देकर आर्य जगत की निरन्तर सेवा कर रहा है। वैदिक सिद्धान्तो से सम्बन्धित शंकाओं/जिज्ञासाओं का समाधान 'शंका-समाधान' स्तम्भ के अन्तर्गत वैदिक वाङ्मय के विद्वान डॉ. वेदपाल द्वारा किया जाता है। आर्यसमाज के पुराने गम्भीर विद्वानों के ज्ञान एवं विद्या को 'ऐतिहासिक कलम से' शीर्षक द्वारा पाठकों तक पहुँचाया जाता है। अध्यात्म ज्ञान के प्रवाह लिए आचार्य धर्मवीर जी की प्रवचन श्रृंखला पाठकों को सहज ही आकर्षित करती है। इनके अतिरिक्त 'पाठकों के विचार, पाठकों की प्रतिक्रियाएँ' पत्रिका के प्रकाशन में सिंहावलोकन का अवसर प्रदान करती हैं। संस्था समाचार, आर्यजगत के समाचार इस पत्रिका को और अधिक रुचिकर बनाते हैं।
आप 'परोपकारी' को डाक द्वारा घर पर मंगा सकते हैं और घर बैठे इसके सदस्य बन सकते हैं।
सदस्यता शुल्क एक वर्ष- 200₹ आजीवन- 2000₹
आप धनराशि चेक, ड्राफ्ट या ऑनलाइन भी भेज सकते हैं- खाताधारक- परोपकारिणी सभा, अजमेर