" संग्रहालय "

        अजमेर की आनासागर झील के किनारे बसे ऋषि उद्यान आश्रम में यह संग्रहालय स्थित है जो कि परोपकारिणी सभा के आधीन है। इस संग्रहालय में महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं को रखा गया है। उनकी वस्तुओं में दो दुशाले, कमण्डल, पादुका (खड़ाऊ), मसिपात्र, रेत घड़ी, चाकू, डाक तोलने की तुला, हस्ताक्षर की मुहर, भोजन के पात्र आदि वस्तुएं हैं। पुस्तकों की छपाई के लिए लन्दन से मंगाई गई प्रिंटिंग मशीन भी इस संग्रहालय में देखने को मिलेगी।

        ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक दृष्टि से यह संग्रहालय बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसके द्वारा १९ वीं सदी के एक महामानव को जानने का अवसर मिलता है। इसमें महर्षि दयानन्द सरस्वती की वस्तुओं के साथ-साथ उनके हस्तलेख, उनके पत्र, उनकी समस्त पुस्तकें भी भी हैं। इसके अतिरिक्त उनके जीवन की क्रमशः घटनाओं पर बनाई गई आकर्षक चित्रावली भी है। यह चित्रावली महर्षि जी के जीवन की कहानी को बताती है और हमें जीवन निर्माण की प्रेरणा भी देती है।

                                                                                                         संग्रहालय का इतिहास 

       स्वामी दयानन्द सरस्वती ने  अपने जीवनकाल में परोपकारिणी सभा की स्थापना की। इस सभा को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और अपने समस्त कार्यों का दायित्त्व सौंपते हुए अपनी वस्तुओं आदि का अधिकार भी  इस सभा को दिया। कार्तिक अमावस्या संवत १९४० वि. तदनुसार 30 अक्टूबर 1883 ई. को उन्होंने अपनी नश्वर देह का त्याग कर दिया। उनके देहान्त के बाद उनकी समस्त वस्तुओं को परोपकारिणी सभा ने अपने अधिकार में ले लिया। 
        स्वामी जी अपने शिष्यों को ये उपदेश दिया करते थे की मेरे बाद मेरी मूर्ति आदि मत बनवाना, नहीं तो लोग उसे ही पूजने लग जाएंगे और ना ही मुझसे जुडी किसी वस्तु का मूर्तिपूजा, अन्धविश्वास या पाखण्ड आदि में उपयोग हो। स्वामी जी की इस इच्छा=आदेश को ध्यान में रखते हुए परोपकारिणी सभा ने १८८५ के अपने अधिवेशन में यह निर्णय लिया कि "स्वामी जी के वस्त्र, बर्तन, काष्ठ की वस्तु और परचून वस्तु जो उपमन्त्री के पास है, उन सबको उपमन्त्री मेरठ समाज भेज देवें।  उक्त आर्यसमाज इन सब वस्तुओं की फहरिस्त को छापकर सब आर्यसमाजों को विदित कर देवे  आर्यसमाज इन सब वस्तुओं में से किसी वस्तु को दुसरे की अपेक्षा विशेष न्योछावर देकर खरीदना चाहे तो वह उसे दे देवें। न्योछावर के एकत्र हुए रुपयों को उपमंत्री के पास भेज देवें । जो वस्तु इस प्रकार से बच रहे उन को स्वामी जी के शिष्य वर्ग को बिना मूल्य भी दे देवें। "
        कुछ समय बाद सभा में यह विचार किया गया कि स्वामी जी की वस्तुओं को ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक दृष्टि से सुरक्षित अवश्य रखना चाहिए। इसके बाद उनकी उपलब्ध वस्तुओं को संग्रहालय में रखा गया।  यह संग्रहालय वर्तमान में परोपकारिणी सभा द्वारा संचालित ऋषि उद्यान के 'महर्षि दयानन्द सरस्वती भवन' के रूप में है। 
        परोपकारिणी सभा के तत्कालीन उपमन्त्री पण्डित मोहनलाल विष्णुलाल पण्ड्या ने स्वामी जी की पुस्तकों तथा अन्य पदार्थों का जो विवरण प्रस्तुत किया था वह इस प्रकार है -
पुस्तक संग्रह - पुस्तकों तथा कागज पत्रों के २४ बस्ते थे जो अजमेर से उदयपुर ले जाए गए।  पुनः वैदिक यन्त्रालय प्रयाग में इनमे से कुछ पुस्तकें ग्रन्थ संशोधनकर्ता पंडितों के उपयोगार्थ भेजी गईं। जब यन्त्रालय १८९१ में अजमेर आ गया तो ये ग्रन्थ भी अजमेर आ गए।  परन्तु यह कहना कठिन है की स्वामी जी का समस्त ग्रन्थ संग्रह अजमेर आ गया और उदयपुर में पण्ड्या जी के पास कोई ग्रन्थ नहीं रहे।  इन बस्तों का विवरण नीचे लिखा है। 
        वेष्टन १ - ऋग्वेद संहिता मूल, पदपाठ तथा ऋग्वेदभाष्य २ जिल्द, ऋग्वेद के वेदार्थयत्न नामक भाष्य की एक प्रति भी इसमें थी। 
        वेष्टन २ - यजुर्वेद संहिता मूल, पदपाठ, अनुक्रमणिका और भाष्य। 
        वेष्टन ३ - सामवेद संहिता मूल तथा पदपाठ। 
        वेष्टन ४ - अथर्ववेद संहिता मूल, पदपाठ ( अष्टम काण्ड पर्यन्त ), अनुक्रमणिका, पण्ड्या जी द्वारा भेंट अथर्ववेद की एक हस्तलिखित प्रति। 
        वेष्टन ५ - शतपथ, ऐतरेय, संहितोपनिषद, वंश, षड्विंश, कौषीतकी तथा गोपथ ब्राह्मण। 
        वेष्टन ६ - वेदांग विषयक ग्रन्थ, अष्टाध्यायी, निरुक्त, शिक्षा, पिंगल सूत्र, महाभाष्य-कैयट विवरण सहित, चरण व्यूह, प्रातिशाख्य आदि। 
        वेष्टन ७ - षड्दर्शन विषयक ग्रन्थ, सर्वदर्शन संग्रह, वेदान्त तत्त्वसार आदि। 
        वेष्टन ८ - उपनिषद् एवं आरण्यक ( कुछ हस्तलिखित ग्रन्थ )। 
        वेष्टन ९ - मनुस्मृति, शुक्रनीति, संन्यास पद्धति ( हस्तलिखित ), संस्कारविधि गुजराती टीका, विदुर प्रजागर के उपयोगी श्लोकों का संग्रह ( हस्तलेख )। 
        वेष्टन १० - इसमें अमरकोष तथा नानार्थाभिधान कोष की दो प्रतियाँ थीं। 
        वेष्टन ११ - वैद्यक विषयक पुस्तकों का संग्रह। इसमें स्वामी जी द्वारा लिखित औषधियों के कुछ नुस्खे भी थे। 
        वेष्टन १२ - अरबी भाषा में मूल क़ुरान तथा स्वामी जी के निर्देशन में तैयार क़ुरान का हिंदी अनुवाद ( हस्तलिखित )। 
        वेष्टन १३ - बाइबिल ३ ( ज़िल्द ), ऋग्वेद का मैक्समूलर कृत अंग्रेजी अनुवाद। 
        वेष्टन १४ - जैनमत के ग्रन्थ - इस बस्ते में "प्राकृत भाषा का संस्कृत शब्दों के साथ अनुवाद अस्त-व्यस्त स्वामी जी का बनाया लिखित पुस्तक " भी था। 
        वेष्टन १५ - इसमें रामसनेही, ब्रह्मसमाज, प्रार्थनासमाज आदि के ग्रंथों के अतिरिक्त भारतेन्दु हरिश्चन्द्र रचित कुछ ग्रन्थ, चन्द्रलोक, भोज प्रबन्ध आदि संस्कृत ग्रन्थ तथा दयानन्द दिग्विजयार्क (स्वामी जी की प्रथम प्रकाशित जीवनी ), ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका उर्दू अनुवाद आदि ग्रन्थ थे। 
        वेष्टन १६ - स्वामी जी कृत चतुर्वेद विषय सूची, चारों वेदों की अकार आदि क्रम से सूची, ऋग्वेद सूचीपत्र, अथर्ववेद के मन्त्रों की सूची, उपनिषद्, ऐतरेय, शतपथ, निरुक्त, निघण्टु, धातुपाठ, उणादि, वार्तिक आदि की सूचियाँ, क़ुरान, बाइबिल और जैन ग्रंथों की सूचियाँ। ये सभी हस्तलेख थे। 
        वेष्टन १७ - स्वामी जी रचित एवं प्रकाशित ग्रन्थ। 
        वेष्टन १८ - स्वामी जी रचित ऋग्वेद और यजुर्वेद भाष्य का ( Rough ) अशुद्ध लेख अर्थात संस्कृत शोधकर भाषा बनाने का। 
        वेष्टन १९ - ऋग्वेद और यजुर्वेद भाष्य का शुद्ध लेख ( Press Copy )।
        वेष्टन २० - ऋग्वेद भाष्य भाषा सहित, शुद्ध प्रति, संस्कारविधि की रफ कॉपी। 
        वेष्टन २१ - कुछ पुस्तकों के रद्दी फार्म। 
        वेष्टन २२ -  स्वामी जी कृत और मुद्रित पुस्तकों की सूची। 
        वेष्टन २३ - हिसाब की बही ४ और नोटबुक २। 
        वेष्टन २४ - गोरक्षार्थ हस्ताक्षरी पत्र। 
        उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त ६३ पुस्तकें वैदिक यन्त्रालय प्रयाग में थीं। पण्ड्या जी ने जो अन्य सूचियां प्रस्तुत कीं वे इस प्रकार हैं -
        १. कपड़ों की फेहरिस्त जो उदयपुर में है। ( संख्या ७४ )
        २. कपड़ों की फेहरिस्त जो वैदिक यन्त्रालय प्रयाग में है। सं. ५ 
        ३. बर्तनों की फेहरिस्त जो उदयपुर में है। सं. २६ 
        ४. बर्तनों की फेहरिस्त जो वैदिक यन्त्रालय प्रयाग में है। सं. १८ 
        ५. काष्ठ की फेहरिस्त जो उदयपुर में है। सं. ७ 
        ६. काष्ठ की फेहरिस्त जो वैदिक यन्त्रालय प्रयाग में है। सं. २ 
        ७. फुतफर्रकात ( प्रकीर्ण ) चीज़ों की फेहरिस्त जो उदयपुर में है। सं. २३ 
        ८. फुतफर्रकात ( प्रकीर्ण ) चीज़ों की फेहरिस्त वैदिक यन्त्रालय प्रयाग में है। सं. ३ 
        इस प्रकार हम देखते हैं कि  निधन के पश्चात् उनकी निजी उपयोग की वस्तुओं तथा पुस्तकालय का सम्पूर्ण विवरण सभा ने आर्य जनता के समक्ष प्रस्तुत करना अपना कर्त्तव्य समझा।  इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि स्वामी जी ने किन-किन ग्रंथों का संग्रह एवं उपयोग किया था।