विषय : महर्षि दयानन्द
शीर्षक : ऋषि दयानन्द
लेखक : श्री सी.एफ. ऐण्ड्रूज

                हर एक वर्ष स्वामी दयानन्द जी के विषय में कुछ नई बात लिखना कठिन है। मेरी सदा इच्छा रही है कि मैं स्वामी दयानन्द के बड़े-बड़े कामों के लिये उनको धन्यवाद दूं  और जब कभी मुझे लेख लिखने को कहा गया तब मैंने यथाशक्ति कभी इंकार नहीं किया।
                महात्मा गांधी के २१ दिन के व्रत के दिनों में मुझे उनके पास रहने का सौभाग्य हुआ, तब मैं किसी आत्मिक विजय प्राप्त करने के लिये भारत की अजेय स्पिरिट को किसी हद तक समझने में समर्थ हुआ हूं। इस तरह मैं स्पष्ट और प्रत्यक्ष, पर शूरवीरता पूर्ण उन बलिदानों को समझ सकता हूँ जो सन्मार्ग और सच्चाई के लिये स्वामी दयानन्द ने किए।
                उनकी तपस्या आरम्भ काल से ही शुरू हुई और जीवन भर बिना किसी प्रकार के नागे के जारी रही और जब कि अन्त में वह उसी उद्देश्य के लिये (जिसको उन्होंने अनुपमेय समझ कर उसका सेवन शुरू किया था) शहीद होकर मृत्यु को प्राप्त हुए।
                स्वामी जी का महत्व आर्य समाज की शक्ति और जीवन से जाना जा सकता है। जिस ने स्वामी जी का इस तरह अनुसरण किया है जिस तरह फल सुन्दर फूल के खिलने का अनुसरण करता है। मैंने संसार भर में आर्य समाज को मनुष्यमात्र की भलाई के लिये श्रेष्ठ काम करते देखा है। पिछले वर्षों में मैंने जो सब से बड़ा शुभ समाचार सुना वह यह है कि पूर्वीय ब्रिटिश अफ्रीका के नैरावी के उन्नत आर्य समाज ने न केवल लड़के-लड़कियों के लिये स्कूल, स्त्री-समाज, कुमार सभा और कई भिन्न-भिन्न संस्थाएं स्थापित कर रखी हैं प्रत्युत उसने अफ्रीका के हवशियों की शिक्षा के लिये भी स्कूल खोला हुआ है। अफ्रीका निवासियों के लिये यह बड़ी नई बात है। इसके लिये मैं आर्य समाज को धन्यवाद देता हूँ।
                मैं समझता हूँ कि ऐसे समय में जब कि मेरी पूरी सेवाओं की सख्त से सख्त आवश्यकता है जनता मेरा लेख इतना छोटा होने पर मुझे क्षमा करेगी।
                अन्त में मेरी यही प्रार्थना है कि आर्यसमाज के सभासदों को अनार्यों और गरीबों के उद्धार और उनकी अवस्था के सुधार के श्रेष्ठ काम में सफलता प्राप्त हो।
                साभार-'प्रकाश' २६-१०-१९२४, लाहौर                                                      (परोपकारी - फरवरी प्रथम, २०११)