दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में अवैदिक मतावलम्बियों द्वारा बाँटे जा रहे साहित्य को देखकर परोपकारिणी सभा ने यह निर्णय लिया कि पाखण्ड और अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाले साहित्य को चुनौती देने के लिए आर्यसमाज की ओर से भी निःशुल्क पुस्तकें वितरित की जानी चाहिएं । इस कार्य के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती के क्रान्तिकारी ग्रन्थ 'सत्यार्थ प्रकाश' को चुना गया। सन २०१४ में पहली बार विश्व पुस्तक मेला दिल्ली में परोपकारिणी सभा की ओर से ५००० सत्यार्थ प्रकाश वितरित करने की व्यवस्था की गई। अगले वर्ष से इसके साथ महर्षि दयानन्द का जीवन चरित्र (इन्द्र विद्यावाचस्पति) और आर्याभिविनय (महर्षि दयानन्द) को भी जोड़ दिया गया। तब से लेकर यह वितरण निरन्तर जारी है।
स्वामी जी ने पाखण्ड, अन्धविश्वास, कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सत्यार्थ प्रकाश लिखा, हम सब का यह दायित्त्व है कि इस ग्रन्थरत्न का अधिक से अधिक प्रचार करें। परोपकारिणी सभा आपकी ओर से यह कार्य करेगी। सत्यार्थ प्रकाश की एक प्रति का मूल्य १०० रुपये होता है, क्योंकि सभा बढ़िया कागज़, मोटी ज़िल्द और बड़ी छपाई में पुस्तक तैयार कराती है, जो की अपनी गुणवत्ता के कारण संग्रहणीय बन जाती है और पाठक उसे चाहकर भी फेंक नहीं पाता - इससे वह किसी न किसी को भी लाभ पहुँचाती ही है। आप जितनी भी प्रतियाँ अपनी ओर से बँटवाना चाहें, उतना दान सभा के खाते में ऑनलाइन, चेक या ड्राफ्ट से सभा के खाते में भेज देवें। आपकी पुस्तकों पर आपका नाम लिखकर, आपके सौजन्य से ही वितरित की जाएँगी। यह महत्त्वपूर्ण कार्य आर्यजनों के सहयोग से ही किया जाता है। परोपकारिणी सभा समस्त आर्यजनों से अपील करती है कि इस कार्य के लिए सभा को अधिक से अधिक सहयोग करें।
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने वेदभाष्य एवं अन्य ग्रन्थों के प्रकाशन के लिए वैदिक यन्त्रालय की स्थापना की थी। परोपकारिणी सभा, अजमेर द्वारा संचालित राजस्थान का प्राचीनतम एवं प्रतिष्ठित मुद्रणालय, जिसमें वर्तमान में परोपकारी पत्रिका का मुद्रण किया जाता है। इस मुद्रणालय को आधुनिक तकनीकी से संचालित करने एवं और अधिक विकसित करने का विचार सभा कर रही है। इस कार्य में भी आर्यजनता के सहयोग की अपेक्षा है।
इतिहास- जिस समय स्वामी दयानन्द ने वेदभाष्य तथा अन्य ग्रन्थों का लेखन एवं प्रकाशन कार्य द्रुतगति से प्रारम्भ किया तभी से स्वामी जी अपना प्रकाशन संस्थान खोलने की आवश्यकता अनुभव करने लगे। अन्ततः माघ शुक्ला २, सं. १९३६ वि. गुरुवार अर्थात १२ फरवरी १८८० ई. को काशी के लक्ष्मीकुण्ड स्थित महाराज विजयनगराधिपति के स्थान पर वैदिक यन्त्रालय की स्थापना हुई। प्रारम्भ में इसका नाम 'प्रकाश यन्त्रालय' रखा गया था, बाद में वैदिक यन्त्रालय कर दिया गया। यन्त्रालय की स्थापना पर स्वामी जी ने अपनी मनोवेदना को इस प्रकार व्यक्त किया - "आज हम पतित हो गए, आज हम गृहस्थ हो गए।" स्वामी जी के जीवनकाल में ही यन्त्रालय काशी से प्रयाग ले जाया गया। यन्त्रालय प्रयाग में चैत्र शुक्ल १, सं. १९३८ वि. के दिन लाया गया। इसके प्रबन्ध हेतु स्वामी जी ने मई १८८३ ई. में वैदिक यन्त्रालय प्रबन्धकर्त्री सभा की स्थापना की। दिसम्बर १८९० की परोपकारिणी सभा की वार्षिक साधारण सभा ने प्रस्ताव स्वीकार कर यन्त्रालय को अजमेर स्थानांतरित करना सुनिश्चित कर दिया। फलतः १ अप्रैल १८९१ को यन्त्रालय अजमेर ले आया गया।
अन्तर्राष्ट्रिय दयानन्द वेदपीठ व अनुसन्धान केन्द्र परोपकारिणी सभा, अजमेर के संयुक्त प्रयास से ऋषि मेले के अवसर पर प्रतिवर्ष वेदगोष्ठी का आयोजन किया जाता है। जिसमें वेद सम्बन्धी किसी विषय का निर्धारण किया जाता है। इसकी सूचना कई माह पूर्व विद्वानों व जनसामान्य को दे दी जाती है। वेद गोष्ठी में अनेक वैदिक विद्वान व अनुसन्धानकर्ता निर्धारित विषय पर अपना शोधपत्र पढ़ते हैं व शंका समाधान सहित चर्चा करते हैं। वेद गोष्ठी में पढे हुए शोधपत्रों में से मुख्य-मुख्य का संकलन पुस्तक रूप में प्रकाशित भी किया जाता है। जो लोग वेद गोष्ठी में नहीं आ सकते वे भी इससे लाभान्वित होते हैं। विद्वानों को भी इस विषय पर अधिक विचार करने का अवसर मिलता है। गत ३० वर्षों से गोष्ठी का आयोजन निरन्तर किया जा रहा है। अब तक निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार किया जा चुका है-
१. ऋषि दयानन्द की वेदभाष्य शैली (१९८८) २. वेद और कर्मकाण्डीय विनियोग (१९८९) ३. अथर्ववेद समस्या और समाधान (१९९०) ४. वेद और विदेशी विद्वान् (१९९१) ५. वैदिक आख्यानों का वास्तविक स्वरूप (१९९२) ६. वेदों के दार्शनिक विचार (१९९३) ७. सोम का वैदिक स्वरूप (१९९४) ८. पर्यावरण समस्या का वैदिक समाधान (१९९५) ९. वैदिक समाज व्यवस्था (१९९६) १०. वेद और राष्ट्र (१९९७) ११. वेद और विज्ञान (१९९८) १२. वेद और ज्योतिष (१९९९) १३. वेद और पदार्थ विज्ञान (२०००) १४. वेद और निरुक्त (२००१) १५. वेद में इतिहास नहीं (२००२) १६. वेद में कृषि व वनस्पति विज्ञान (२००३) १७. वेद में शिल्प (२००४) १८. वेदों में अध्यात्म (२००५) १९. वेदों में राजनीतिक चिन्तन (२००६) २०. वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है (२००७) २१. वैदिक समाज विज्ञान (२००८) २२. सत्यार्थ प्रकाश ७वाँ समुल्लास व वेद (२००९) २३. सत्यार्थ प्रकाश ८वाँ समुल्लास व वेद (२०१०) २४. सत्यार्थ प्रकाश ९वाँ समुल्लास व वेद (२०११) २५. महर्षि दयानन्दाभिमत मन्तव्यः वैदिक परिप्रेक्ष्य (२०१२) २६. वेद और सत्यार्थ प्रकाश का १२वाँ समुल्लास (२०१३) २७. भारतीय मत सम्प्रदाय और वेद - १ (२०१४) २८. भारतीय मत सम्प्रदाय और वेद - २ (२०१५) २९. दयानन्द दर्शन की वेदमूलकता (२०१६) ३०. वेदों में शिक्षा के सिद्धान्त (२०१७) ३१. षड्दर्शनों की वेदमूलकता और महर्षि दयानन्द (२०१८)
परोपकारिणी सभा द्वारा यह प्रतियोगिता प्रतिवर्ष ऋषि मेले के अवसर पर आयोजित की जाती है। इस प्रतियोगिता में २१ वर्ष तक के छात्र भाग ले सकते हैं। किसी भी वेद को आद्योपान्त स्मरण करके इस प्रतियोगिता में भाग लिया जा सकता है। जो छात्र जिस वेद पर गत वर्षों में पारितोषिक ग्रहण कर चुके हैं, वे उस वेद से अतिरिक्त वेद स्मरण करके भाग ले सकते हैं। विजेता छात्रों को प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान के अनुसार पुरस्कार ऋषि मेले (महर्षि दयानन्द निर्वाणोत्सव) के मंच से प्रदान किये जाते हैं। पुरस्कार राशि के साथ-साथ महर्षि कृत वेदभाष्य, सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका एवं अन्य ऋषिकृत साहित्य भी भेंट-स्वरूप प्रदान किया जाता है।