ऋषि मेले के अवसर पर आर्य जगत् के विद्वानों, कार्यकर्ताओं, प्रचारकों को भी सम्मानित भी किया जाता है। अपने-अपने क्षेत्र में आर्य समाज के कार्य में विशिष्ट सेवाएं देने वाले महानुभावों को इन पुरस्कारों के लिये चयनित किया जाता है। यह सम्मान परोपकारिणी सभा के माध्यम से विभिन्न आर्यजनों द्वारा अपने परिजन की स्मृति में उन्हीं के नाम से दिया जाता है। कोई भी भद्र पुरुष यदि अपने किसी परिजन की स्मृति को चिरस्थाई रखना चाहते हैं तो वे भी उनके नाम से कोई पुरस्कार प्रारम्भ करवा सकते हैं, परोपकारिणी सभा इस कार्य के लिए आपका स्वागत करती है। आप जिस भी कार्य को प्रोत्साहन देना चाहते हैं, उस कार्य में विशेष योगदान देने वाले विद्वानों को पुरस्कार अपने परिजन की स्मृति में दे सकते हैं, जैसे गुरुकुल, शोध, वैदिक धर्म-प्रचार, भजनोपदेशक, साहित्य, लेखन, संस्कृत आदि ; इससे हमारे सम्माननीय परिजन स्मृति तो चिरस्थाई होती ही है साथ ही वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार को भी प्रोत्साहन मिलता है। इस योजना से जुड़ने के लिए परोपकारिणी सभा से सम्पर्क कर अपने नाम से एक स्थिर निधि बनवाएँ जिसके ब्याज से प्रतिवर्ष यह सम्मान दिया जाता रहे।
महर्षि दयानन्द सरस्वती के बलिदान दिवस के रूप में यह कार्यक्रम परोपकारिणी सभा द्वारा दीपावली के बाद आयोजित किया जाता है। तीन दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में धर्म, समाज, राष्ट्र, भाषा आदि विषयों पर आमन्त्रित विद्वानों द्वारा विचार विमर्श किया जाता है। ऋषि मेले में देश के उच्च कोटि के संन्यासी, वानप्रस्थी, आचार्य, विद्वान्, लेखक, भजनोपदेशक, पधारते हैं, जिनका लाभ आगन्तुकों को यज्ञ, वेदपाठ, वेदोपदेश, भजन, प्रवचन, वेदगोष्ठी, व्यायाम-प्रदर्शन आदि के रूप में मिलता है।
ऋषि मेले से पाँच दिन पूर्व से वेदपारायण यज्ञ प्रारम्भ हो जाता है व उसकी पूर्णाहुति ऋषि मेले के अन्तिम दिन प्रातःकालीन यज्ञ में होती है। ऋषि मेले में अनेक प्रसिद्ध पुस्तक प्रकाशकों, औषध-निर्माताओं, हवनकुण्ड, आचमन पात्र, कैलेंडर, ध्वज कैसेट आदि के विक्रेताओं की दुकानें भी लगती हैं। आगन्तुकों के निवास एवं भोजन की व्यवस्था परोपकारिणी सभा द्वारा आप सभी के सहयोग से की जाती है।
परोपकारिणी सभा की ओर से प्रतिवर्ष देश के किसी एक प्रान्त में प्रचार यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें परोपकारिणी सभा के अधिकारी, विद्वान, कार्यकर्ता सम्मिलित होते हैं। इस यात्रा का उद्देश्य उस स्थान के कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करना, आर्यसमाज का प्रचार एवं विस्तार करना, ऐतिहासिक स्थानों एवं दस्तावेज़ों की खोज करना आदि होता है। डॉ. धर्मवीर जी की इच्छा थी कि परोपकारिणी सभा देश के हर उस कोने में आर्यसमाज को पहुँचाए जहाँ अभी उसकी पहुँच नहीं है। उनका वाक्य था - "देश के आखिरी व्यक्ति तक हमारी पहुँच होनी चाहिए"। इसी उद्देश्य को क्रियान्वित करने के लिए उन्होंने यह प्रचार यात्रा प्रारम्भ की। उन्होंने अपने जीवनकाल में ही देश के कई हिस्सों में यात्राएं कीं, जिसके फलस्वरूप परोपकारिणी सभा को कई नए ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़, नए कार्यकर्ताओं की उपलब्धि हुई। पंजाब, गुजरात, बैंगलूरु आदि यात्राएँ चिरस्मरणीय हैं।
अजमेर की आनासागर झील के किनारे बसे ऋषि उद्यान आश्रम में यह संग्रहालय स्थित है जो कि परोपकारिणी सभा के आधीन है। इस संग्रहालय में महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं को रखा गया है। उनकी वस्तुओं में दो दुशाले (उदयपुर नरेश तथा शाहपुराधीश द्वारा भेंट), कमण्डल, पादुका (खड़ाऊ), मसिपात्र, रेत घड़ी, चाकू, डाक तोलने की तुला, हस्ताक्षर की मुहर, भोजन के पात्र, यज्ञ पात्र आदि वस्तुएं हैं। पुस्तकों की छपाई के लिए लन्दन से मंगाई गई प्रिंटिंग मशीन भी इस संग्रहालय में देखने को मिलेगी।
ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक दृष्टि से यह संग्रहालय बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसके द्वारा १९ वीं सदी के एक महामानव को जानने का अवसर मिलता है। इसमें महर्षि दयानन्द सरस्वती की वस्तुओं के साथ-साथ उनके हस्तलेख, उनके पत्र, उनकी समस्त पुस्तकें भी हैं। इसके अतिरिक्त उनके जीवन की क्रमशः घटनाओं पर बनाई गई आकर्षक चित्रावली भी है। यह चित्रावली महर्षि जी के जीवन की कहानी को बताती है और हमें जीवन-निर्माण की प्रेरणा भी देती है।